मुझे कुछ खास बातें हैं जो दिल से निकलकर दुनिया के सामने रखना चाहता हूँ। अब मैं नहीं सोचता कि लोग क्या कहेंगे। मेरी ज़िंदगी और उसमें जो मैंने महसूस किया, बस वही लिखने का मन है।
लगता है, हम सब ने ज़िंदगी में इतनी गलतियाँ की हैं कि इस दुनिया में आना और यहाँ की तकलीफ सहना, शायद हमारे पापों का प्रायश्चित्त है। ज्योतिष में हाथ आज़माया, और वो भी अच्छे से। इसने मेरी सोच को ही बदल दिया। जो चीज़ें कभी अच्छी लगती थीं, अब डर लगता है उनसे। ज़िंदगी इतनी छोटी है, पर करने के लिए बहुत कुछ बड़ा। प्यार, शक्ति, माया... सब कुछ तो एक जैसे ही घेरे में हैं।
मैं एक छोटी सी बात शेयर करना चाहता हूँ। देखा है मैंने, लोग अच्छाई और नाम के पीछे भागते हैं, प्यार में या ज़िंदगी बनाने में। कुछ गलत भी नहीं है इसमें, क्यों कि मुसीबत कौन चाहेगा? लोग अपनों के लिए जान भी दे देते हैं, इतनी गहराई से प्यार करते हैं।
शादी की सलाह में, प्यार का बहुत बड़ा मान है। जब मुझे लगता है कि दो लोगों का मिलन सही है, तब कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कहते हैं कि लड़की खूबसूरत नहीं है या लड़का थोड़ा सा छोटा है। ये कैसी सोच है? हम क्या खिलौनों से शादी कर रहे हैं ?
अगर आप अपने जीवनसाथी में भगवान को देख सकते हैं, तो फिर शादी का मतलब समझा जा सकता है। फिर देखो, लोग गलत इंसान से शादी करके पछताते हैं, रोते रहते हैं। हाँ, भगवान की माया में बहुत ताकत है, और हम सब उसी चक्कर में फंसे रहते हैं।
प्रेम, ज़िंदगी का एक ऐसा पहलू है जो बार बार हमारे दरवाजे पर दस्तक देता है। हर बार, प्रेम का रूप, उसकी गहराई, उसका मतलब बदल जाता है। क्या ये प्रेम कहलाने लायक है? ये सवाल सच में सोचने वाला है। प्रेम, कभी एक पल में सब कुछ बदल सकता है, तो कभी, सालों का इंतजार करवाता है।
हाँ, मैं ये भी मानता हूँ कि ज़िंदगी में प्रेम एक नहीं बार बार होता है, अब ऐसे प्रेम क्या प्रेम कहलाने लायक है? बड़ा अजीब मालूम होता है। लोग कोशिश करते हैं, कुछ को मिल जाता है प्रेम, कुछ फिर रोते हैं। थोड़ा जरा तटोलिए इसे, देखिए इसे, प्रभु से, देवी से पूछिए। जहन्नुम में रहने से बढ़िया, तो अकेला ही रहना ठीक है। प्रभु से बातें करते करते ही जीवन बिता दो और बाकी जो अपने माता पिता हैं उनकी सेवा करते रहो।
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